भारतीय किसान
कृषक-संस्कृति – गाँधी जी कहा करते थे –“भारत की संस्कृति कृषक-संस्कृति है ----- भारत का ह्रदय गाँवों में बसता है | गाँवों में ही सेवा और परिश्रम के अवतार किसान बसते हैं | ये किसान नगर्वसियों के अन्नदाता हैं, सृष्टिपालक हैं |”
सादगी को महत्व – भारतीय किसान सीधा-सादा जीवन-यापन करता है | सादगी का यह गुण उसके तन से ही नहीं, मन से भी झलकता है | सच्ची बात को सीधे-सादे शब्दों में कहता उसका स्वभाव है |
परिश्रमी जीवन – भारतीय किसान बड़ा कठोर जीवन जीता है | वह धरती की छाती को अपने परिश्रम के जल से सींचता है | गर्मी की लू, सर्दी की ठंडी रातें, वर्षा की उमड़ती-घुमड़ती घटाएँ उसका रास्ता रोकती हैं किंतु वह किसी की परवाह नहीं करता | हर मौसम में अविचल रहकर कर्म करना उसका सवभाव है |
ह्रष्ट-पुष्ट – किसान शरीर से ह्रष्ट-पुष्ट रहता है | माँ धरती और प्रक्रति की गोद में खेलने के कारण न उसे बिमारियाँ घेरती हैं, न मानसिक परेशानिया |
गरीबी – भारत के अधिकांश किसान गरीबी में जीते हैं | उनके पास थोड़ी ज़मीन है | छोटे किसान दिन-भर मेहनत करके भी भरपेट खाना नहीं कमा पाते | उनके पास खेती के उन्नत साधनों का आभाव रहता है |
किसान की दुर्दशा के कारण – अधिकांश किसान निरक्षर हैं | अज्ञान के कारण वे ओंध्विश्वासों में आस्था रखते हैं | परिणामस्वरुप उसका परिवार बढता जाता है और ज़मीन कम होती जाती है | किसान के अज्ञान के कारणही व्यापारी लोग उन्हें आसानी से लुट लेते हैं |
किसानों की दशा में सुधार – किसानों की दशा मेंसुधार लाने के अनेक उपाय हैं | कृषि को बैंक, सरकार तथा सार्वजानिक संस्थाओं द्वारा मदद दी जाए | किसानों को उन्नत बीज, खाद, कीटनाशक सस्ते दामों पर उपलब्ध कराए जाएँ | उनके बच्चों को सस्ती शिक्षा दी जाय | उनके उत्पादन को ऊँचे दामों पर बेचने का प्रबंध किया जाय | सोभाग्य से भारत की सरकार ये कदम उठा रही है | आशा है, आज का अन्नदाता किसान कल स्वयं भी खुशहाल होगा |
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