भारतीय खेलों का वर्तमान और भविष्य
खेल-विमुखता क्यों – जिस देश में बच्चे को खेलता देशकर माता-पिता के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच जाती हों, अध्यापक छात्रों से बचाने का प्रयास करते हों, खिलाडियों को प्रोत्साहन देने की बजाय ताने सुनने को मिलते हों, उस देश का वर्तमान और भविष्य रामभरोसे ही हो सकता है | भारत में भी खेलों का वर्तमान तथा भविष्य रामभरोसे है | आज देश में दिन-प्रतिदिन न्य इंजीनियरिंग कॉलेज, आई.आई.टी., प्रबंधन संस्थान, मेडिकल कॉलेज, मीडिया सेंटर, काल सेंटर आदि खुल रहे हैं | परंतु खेल-सुविधाएँ निरंतर कम हो रही हैं | खेल-संस्थानों में भी परंपरागत सिक्षा को महत्त्व मिलता जा रहा है |
खेलों को प्रोत्साहन कैसे मिले – भारत में खेलों को प्रोत्साहन तभी मिल सकेगा, जबकि भारत सरकार अपनी सिक्षा-निति और खेल निति में परिवर्तन करेगी | आज भूखे बेरोजगार भरक को पेट भरने के लिए आजीविका के साधन चाहिए | इसलिए स्कूल से लेकर घर तक सभी बच्चों को व्यवसायिक सिक्षा दिलाने में लगे हुए हैं | व्यवसायिक सिक्षा पाने वाले छात्र से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वह किसी खेल या कला में पारंगत हो | विद्यार्थियों का मुल्यांकन भी केवल शैक्षणिक आधार प्र किआ जाता है | यदि शिक्षा सम्पूर्ण विकास को पाने लक्ष्य बना ले | छात्रों के लिए खेल तथा कलात्मक गतिविधियों में उतीर्ण होना भी अनिवार्य कर दिया जाए तो खेल-जगत में नए अध्याय खुल सकते हैं | तब माता-पिता बचपन से ही बच्चों के लिए पुस्तकें नहीं, गेंद-बल्ला भी लाया करेंगे और उसके साथ खेलकर उनकी रूचि बढ़ाएंगे |
पुरस्कार और खेल-ढाँचे की व्यवस्था – यदि भारत में नई प्रतिभाओं को खेलों की ओर बढ़ाना है तो उसके लिए गाँवों से लेकर बड़े नगरों तक कुछ मुलभुत सुविधाएँ प्रदान करनी पड़ेंगी | खेल-प्रशिक्षण की नई अकादमियाँ, प्रशिक्षण, धन-राशि, प्रतियोगताओं के आयोजन, पुरस्कार, सम्मान आदि की व्यवस्थाएँ बढ़ानी होंगी | यह अकेले सरकार के भरोसे नहीं हो सकता | जिस प्रकार एक गायक, नर्तक, भजन-मंडली और नाटक मंडली को आगे बढ़ाने के लिए समाज में नए-नए आयोजन होते रहते हैं, उसी प्रकार खेलों में भी ऐसे आयोजन करने पड़ेंगे | लोग इसे मनोरंजन का साधन मानेंगे | और उसमें अपने बच्चों की सहभागिता बढ़ाएंगे तभी इनका विकास हो पाएगा |
हमारा वर्तमान – खेलों में भारत जैसे विशाल राष्ट्र का वर्तमान बहुत निराशाजनक है | केवल क्रिकेट ही ऐसा खेल है जिसमें ग्लैमर के कारण लोग इस पर जान छिडकते हैं | पूरा देश क्रिकेट के पीछे पागल है | यह खेल न तो भारत की परिस्थितयों के अनुकूल है, न इसे खेलने की सुविधाएँ हमारे पास हैं | विश्व में क्रिकेट के सबसे अधिक आयोजन भारत में ही होते हैं | परंतु हॉकी की दुर्दशा देखिए | इसी खेल में भारत ने विश्व-भर में अपनी पहचान बनाई थी | भारत ने इस खेल में आठ ओलंपिक स्वर्ण और दो कांस्य प्राप्त किए हैं | परंतु न तो सरकार ने उसे प्रोत्साहन दिया, न मीडिया और जनता ने बढ़ावा दिया | परिणाम स्वरूप हॉकी के खिलाड़ी हाशिये प्र होते-होते ओलंपिक से ही बाहर ह गए | इसी भाँती हमारे पहलवान, मुक्केबाज, तैराक, निशानेबाज समाज में उतना सम्मान और धन नहीं पा सकते | इस कारण येखेल पिछड़ते गए | बीजिंग के अलोंपिक में भी जिन खिलाडियों ने पुरस्कार जीते, वे अपनी निजी मेहनत के बल पर जीते | उनकी जीत में सरकार और समाज का योगदान बहुत कम है |
भविष्य – यदि बीजिंग अलोंपिक के स्वर्ण पदक ने भारत सरकार और जनता की आँखों को खोलने में सफलता पा ली, तो खेलों का नया अध्याय खुल सकेगा | यदि करोड़ों के पुरस्कार देकर उन्होंने कर्तव्य से छुट्टी पा ल तो फिर ढाक के वही तीन पात रहेंगे | हमें आशा है कि नई जीत से उत्साहित होकर कुछ परिवर्तन अवश्य आएँगे और हम खेलों में आगे बढ़ेंगे |
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