लड़का-लड़की एक समान, दोनों से ही घर की शान
लड़का-लड़की में असमानताएँ – लड़का-लड़की की समानताओं को समझने से पहले उनकी असमानताओं को समझना अनिवार्य है | लड़का-लड़की दोनों के कुछ अंगों में अंतर है | परंतु उनके अधिकांश एंड और तंत्र एक जैसे हैं | उनका जन्म, खान-पीन, पाचन-तंत्र, बीमारी, इलाज, मृत्यु आदि लगभग एक-समान हैं | अंतर मात्र प्रजनन-तंत्र का है | उनमें भी वे दोनों सहयोगी हैं | दोनों में से किसी के बिना सृष्टि-तंत्र नहीं चल सकता |
स्वभाव में अंतर – लड़का-लड़की के मन में एक-जैसे भाव होते हैं ; फिर भी उनकी प्रमुखता में अंतर होता है | नारी में कोमलता, भावुकता, व्यवहार-कुशलता अधित होती है | पुरुष में कठोरता, उग्रता, ताकिर्कता अधिक होती है | इस अंतर का मुख्य कारण उनके कर्म हैं | नारी को संतान-पालन का कर्म करना पड़ता है ; इसलिए ईश्वर ने उसे शरीरिक कोमलता और सुकुमारता प्रदान की है | पुरुष को रक्षण और पालन का कर्म करना पड़ता है, इसलिए उसमें कठोरता अधिक होती है | परंतु ये अंतर मुलभुत नहीं हैं | परंतु समाज बस इतने-से अंतर से ही लड़के-लड़की में जमीन-आसमान का अंतर कर देता है |
लड़के को महत्व मिलने का कारण – भारतीय समाज पुरुष-प्रधान है | इसमें पुरुषों को अधिक महत्व दिया जाता है | लड़कियों को मात्र ‘खर्चा’ माना जाता है | इसलिए वे ‘कामधेनु’ जैसी होती हुई भी ‘बोझ’ मानी जाती हैं | धर्म-क्षेत्र में यह धारणा भी प्रचलित है कि पुरुष योनी में ही मोक्ष मिल सकता है | इसलिए लड़के को अनिवार्य माना जाता है | परिवारों में यह धारणा भी प्रचलित है कि लड़के से ही वंश चलता है | व्यावहारिक कारण यह कि लड़की को ‘पराया धन’ मन जाता है | उसे विवाह के बाद पति के घर जाना पड़ता है | अतः हर माता-पिता अपने बुढ़ापे के लिए लड़का चाहते हैं |
लड़की को समान महत्व मिलना चाहिए – लड़के को हर प्रकार अपने लिए उपयोगी मानकर अनके माता-पिता लड़के के लालन-पालन शिक्षा पर अधिक व्यय करते हैं, लड़की पर कम | यस अन्याय है | सौभाग्य से शिक्षित परिवारों में यह अंतर मिटता जा रहा है | आज अवश्यकता एस बात की है कि सभी लोग लड़के-लड़की का अंतर करके लड़की को दबाना उचित नहीं | दोनों को अपनी-अपनी अभिरुचि के अनुसार फलने-फूलने का अवसर दिया जाना चाहिए |
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