Saturday, December 17, 2016


मन के हारे हार है, मन के जीते जीत 

मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति : मन – मानव की सबसे बड़ी शक्ति ‘मन’ है | मनुष्य के पास मन है, इसलिए वह मनुष है, मनुज है, मानव है | मानसिक बाले पर ही मनुष ने आज तक की यह सभ्यता विकसित की है | मन मनुष्य को सदा किसी-न-किसी कर्म में रत रखता है |

मन के दो पक्ष : आशा-निराशा – धुप-छाँव के समान मनव-मन के दो रूप हैं – आशा-निराशा | जब मन में शक्ति, तेज और उत्साह ठाठें मारता है तो आशा का जन्म होता है | इसी के बल पर मनुष्य हज़ारों विपतियों में भी हँसता-मुस्कराता रहता है |

निराश मन वाला व्यक्ति सारे साधनों से युक्त होता हुआ भी युद्ध हर बैठता है | पांडव जंगलों की धुल फाँकते हुए भी जीते और कौरव राजसी शक्ति के होते हुए भी हारे | अतः जीवन में विजयी होना है तो मन को शक्तिशाली बनाओ |

मन को विजय का अर्थ – मन की विजय का तात्पर्य है – काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जैसे शत्रुओं पर विजय | जो व्यक्ति इनके वश में नहीं होता, बल्कि इन्हें वश में रखता है, वह पुरे विश्व पर शासन कर सकता है | स्वामी शंकराचार्य लिखते हैं – “जिसने मन जो जीत लिया उसने जगत को जीत लिया |”

मन पर विजय पाने का मार्ग – गीता में मन पर नियंत्रण करने के दो उपाय बाते गए हैं – अभ्यास और वैराग्य | यदि व्यक्ति रोज़-रोज़ त्याग या मोह-मुक्ति का अभ्यास करता रहे तो उसके जीवन में असीम बल बल आ सकता है |

मानसिक विजय ही वास्तविक वियज – भारतवर्ष ने विश्व को अपने मानसिक बल से जीता है, सैन्य-बल से नहीं | यही सच्ची विजय भी है | भारत में आक्रमणकारी शताब्दियों तक लड़-जीत कर भी भारत को अपना न बना सके, क्योंकि उनके पास नैतिक बल नहीं था | शरीर-बल से हारा हुआ शत्रु फिर-फिर आक्रमण करने आता है, परंतु मानसिक बल से परास्त हुआ शत्रु स्वयं-इच्छा से चरणों में लोटता है | इसीलिए हम प्रभु से य्ह्ही प्राथना करते हैं – मानसिक बल से परस्त हुआ शत्रु स्वयं-इच्छा से चरणों में लोटता है | इसीलिए हम प्रभु से यही प्रार्थना करते हैं – 

हमको मन की शक्ति देना, मन विजय करें |
दूसरों की जय से पहले, खुद को जय करें ||


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